Sunday, April 26, 2009

नाम लेते हैं

वो मेरा जब भी नाम लेते हैं

वो मेरा इम्तिहान लेते हैं

मैं ठहरी झील नहीं हूँ हमदम

क्यूँ वो चांदनी बिखेर देते हैं

सुबह को, शाम को, और रात में भी

क्यूँ हाथ में वो जाम लेते हैं

वो मेरा मुकद्दर नहीं तो क्या

"सैफ़" गिरते को थाम लेते हैं

Saturday, April 25, 2009

हाले-दिल

मेरे हालात मुझे चैन से रहने नहीं देते
मैं कहूँ हाले-दिल तो वो कहने नहीं देते
सिसकिओं में रात निकली कल की
शहर के मातम मुझे सोने नहीं देते
है विरानिओं में धुंधला सा साया मेरा
नोचते हैं गोस्त वो मुझे मरने नहीं देते
बिखर ही जाता हूँ माला से मोतिओं की तरह
क्यूँ मेरे दोस्त मुझे मेरा रहने नहीं देते
क्या जाने "सैफ़" क्या मर्जी है उनकी
जिंदगी क्यूँ वो मेरी बदलने नहीं देते

Friday, April 17, 2009

तू मेरे पास है

झूठ है सब तेरा ख्याल नहीं
पास है तू कोई मलाल नही
तू मेरे लहू में है अक्सर
केह दे तू रंग इसका लाल नहीं
इतना निखरा है जिंदगी ऐ तू
जितना मुझ पर कभी जमाल नहीं
कल रात रुबरु था छत पर
कैसे कहदुं वो हिलाल नहीं
दिल में तुम समाए हो ऐसे
"सैफ़" पर अब कोई सवाल नहीं

Tuesday, April 7, 2009

अकसर....

सपने दिखता रहा अकसर वो
रातों को जगाता रहा अकसर वो
दूर से ही देखता रहा मैं उसको
पास अपने बुलाता रहा अकसर वो
धड़कने दे गया जिंदगी लेकर
तन्हाइयों में गुनगुनाता रहा अकसर वो
कुछ तो बदलेगी दुनिया अपनी
यही बात बताता रहा अकसर वो
ऐ"सैफ़" कोई ग़म हो या ख़ुशी हो उसको
बस मुस्कुराता रहा अकसर वो

Saturday, April 4, 2009

शहर

न शहर मेरा न ही रास्ते
हम चलें है किसके वास्ते
यहाँ कोई अपना हो हमसफर
कौन जी रहा है इस आस पर
कभी हाथ थामो तेरा हूँ मैं
कोई आवाज़ दे कहाँ हूँ मैं
इक ग़ज़ल कहूँ मैं आप से
दिल में रखना सम्हाल के
मैं ख्वाबों में खो गया "सैफ़"
विरान शहर का हो गया "सैफ़"

Thursday, April 2, 2009

ऐसा भी क्या ?

तुम्हे भी मेरी हद पता है ज़ालिम
चुन चुन के वार करती हो

जो यूँ बेकरार हैं हम तुम भी हो
या आँखों आँखों में प्यार करती हो

मुस्कुराती हो कभी शर्माती हो
ये सितम क्यूँ मेरे यार करती हो

रात का ख़ुमार रहता है पुरे दिन
तुम क्यूँ ऐसा श्रृंगार करती हो

बस एक नज़र और दीवाना किया
"सैफ़" को क्यूँ इतना बेकरार करती हो