Sunday, May 3, 2009

जीवन

नदी की धार पर जीवन

लगे बेकार सा जीवन

न कोई साथी न संगत

चले बस आर पे जीवन

अर्थ जीवन का है गेहरा

बहे किस पार ये जीवन

समा कर खुद को खुद में

अकेला क्यूँ चले जीवन

"सैफ़" ये कैसी है मुश्किल ?

चले बिना अर्थ के जीवन

3 comments:

मनुदीप यदुवंशी said...

Very Good Saif bhai. Jeevan ki gahri gart main jakar likhte ho..aisa lagta hai. Uttam rachna....

Yogesh Verma Swapn said...

समा कर खुद को खुद में

अकेला क्यूँ चले जीवन

badhia rachna.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

न कोई साथी न संगत

चले बस आर पे जीवन

Bahut sundar panktiyan hain!