सपने दिखता रहा अकसर वो
रातों को जगाता रहा अकसर वो
दूर से ही देखता रहा मैं उसको
पास अपने बुलाता रहा अकसर वो
धड़कने दे गया जिंदगी लेकर
तन्हाइयों में गुनगुनाता रहा अकसर वो
कुछ तो बदलेगी दुनिया अपनी
यही बात बताता रहा अकसर वो
ऐ"सैफ़" कोई ग़म हो या ख़ुशी हो उसको
बस मुस्कुराता रहा अकसर वो
2 comments:
sunder rachna.
वाह! मेरे दोस्त तुमने क्लेजा निकाल के रख दिया है यार. तुम बहुत उम्दा शायरी करने लगे हो सरफराज़ भाई. बहुत बढिया.
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