Saturday, August 1, 2009

तुम्हे कुछ याद तो होगा ?

तुम्हे कुछ याद तो होगा ?

शायद......

ये सवाल है या जवाब ?

हो सकता है .....

क्या ?

ये मैं नहीं जानता.....

मैं समझा नहीं ?

आप सवाल बहुत करते हैं.......

मैं या आप ?

पता नहीं....

तो क्या पता है ?

ये भी पता नहीं.....

वो पल जो हमारे थे ?

मुझे कुछ याद नहीं .....

छोडो जाने दो !

खुदा हाफिज़

फिर एक पल

चल देते,

अकेले होते अगर

ज़िन्दगी तेरी,

आर पकड़

रह गये, लोग रह गये

मोड़ पर,

जो गये थे बिछड़

गुनेहगार हूँ मैं

ज़माने तेरा

आज़माले मुझे तू

फिर एक पल

Friday, July 3, 2009

आ जाओ न

गर्म हवाओं को बसंत की दस्तक

तिलक कर माथे पुरवाई के

आ जाओ झमाझम शरमाई सी

देखो रस्ता तकते हैं सब

चिराग लेकर हांथों में लेकर

न विचिलित करो मुरझाने को

आ जाओ तन मन भिगाने को

रस्ता तुम्हारा तकते हैं सब

धरती का तन बच्चों का अन

Thursday, June 18, 2009

कुछ सवाल हैं ?

कुछ सवाल हैं ?


ये किस के लिए ?

माथे की बिंदिया
कानों में झुमके
गालोंकी लाली
आंखों का काज़ल


किस लिए ?

आंखों का शरमाना
होंठों की जुम्बिश
पलकों का झुक जाना
दिल का घबराना


कौन देता है ?

चलने की अदा
बातों में शरारत
पलकों की नज़ाकत
आंखों में क़यामत


क्या जानते हो ?

आंखों के सवाल
होंठों के ज़वाब
इशारों की भाषा
महकता शबाब


कैसी होती है ?

अधूरी रात
खामोशी में बात
सन्नाटे में हवा
अनसुलझे सवालात


क्यूँ होती है ?

बेचैन रूह
बेचैन आह
बेचैन जिस्म
बेचैन राह


क्या समझ में आता है ?

धड़कता दिल
महकती साँसें
आंखों का सावन
होंठों की बातें


क्या जानते हो ?

प्यार का अर्थ
प्यार की ज़बान
प्यार की भाषा
प्यार की शान










Saturday, May 16, 2009

मुझे तुम प्यार करते हो

मुझे तुम प्यार करते हो

तो ये हक़ भी रखते हो

मेरे ख्वाबों में तुम आओ

मेरी तन्हाईयाँ मिटा जाओ

बहारें तुम से रोशन हैं

नज़ारे तुम से रोशन हैं

तुम ही से है कायनात मेरी

तुम्ही से हर बात मेरी

तुम ही तुम हो ज़माने में

तुम्ही हो दिल लगाने में

कोई न तुम से है दूजा

तुम्हारी करता मैं पूजा

चले आओ ज़रा छुपकर

ज़माने से ज़रा बचकर

मैं अब भी तुम्हारा हूँ

सितम से अब मैं हारा हूँ

कमी क्या है मुझ में ऐसी

क्यूँ तेरे चेहरे पर है उदासी

बात है बस इतनी छोटी

मुझे तुम प्यार करते हो !

Sunday, May 3, 2009

जीवन

नदी की धार पर जीवन

लगे बेकार सा जीवन

न कोई साथी न संगत

चले बस आर पे जीवन

अर्थ जीवन का है गेहरा

बहे किस पार ये जीवन

समा कर खुद को खुद में

अकेला क्यूँ चले जीवन

"सैफ़" ये कैसी है मुश्किल ?

चले बिना अर्थ के जीवन

Sunday, April 26, 2009

नाम लेते हैं

वो मेरा जब भी नाम लेते हैं

वो मेरा इम्तिहान लेते हैं

मैं ठहरी झील नहीं हूँ हमदम

क्यूँ वो चांदनी बिखेर देते हैं

सुबह को, शाम को, और रात में भी

क्यूँ हाथ में वो जाम लेते हैं

वो मेरा मुकद्दर नहीं तो क्या

"सैफ़" गिरते को थाम लेते हैं

Saturday, April 25, 2009

हाले-दिल

मेरे हालात मुझे चैन से रहने नहीं देते
मैं कहूँ हाले-दिल तो वो कहने नहीं देते
सिसकिओं में रात निकली कल की
शहर के मातम मुझे सोने नहीं देते
है विरानिओं में धुंधला सा साया मेरा
नोचते हैं गोस्त वो मुझे मरने नहीं देते
बिखर ही जाता हूँ माला से मोतिओं की तरह
क्यूँ मेरे दोस्त मुझे मेरा रहने नहीं देते
क्या जाने "सैफ़" क्या मर्जी है उनकी
जिंदगी क्यूँ वो मेरी बदलने नहीं देते

Friday, April 17, 2009

तू मेरे पास है

झूठ है सब तेरा ख्याल नहीं
पास है तू कोई मलाल नही
तू मेरे लहू में है अक्सर
केह दे तू रंग इसका लाल नहीं
इतना निखरा है जिंदगी ऐ तू
जितना मुझ पर कभी जमाल नहीं
कल रात रुबरु था छत पर
कैसे कहदुं वो हिलाल नहीं
दिल में तुम समाए हो ऐसे
"सैफ़" पर अब कोई सवाल नहीं

Tuesday, April 7, 2009

अकसर....

सपने दिखता रहा अकसर वो
रातों को जगाता रहा अकसर वो
दूर से ही देखता रहा मैं उसको
पास अपने बुलाता रहा अकसर वो
धड़कने दे गया जिंदगी लेकर
तन्हाइयों में गुनगुनाता रहा अकसर वो
कुछ तो बदलेगी दुनिया अपनी
यही बात बताता रहा अकसर वो
ऐ"सैफ़" कोई ग़म हो या ख़ुशी हो उसको
बस मुस्कुराता रहा अकसर वो

Saturday, April 4, 2009

शहर

न शहर मेरा न ही रास्ते
हम चलें है किसके वास्ते
यहाँ कोई अपना हो हमसफर
कौन जी रहा है इस आस पर
कभी हाथ थामो तेरा हूँ मैं
कोई आवाज़ दे कहाँ हूँ मैं
इक ग़ज़ल कहूँ मैं आप से
दिल में रखना सम्हाल के
मैं ख्वाबों में खो गया "सैफ़"
विरान शहर का हो गया "सैफ़"

Thursday, April 2, 2009

ऐसा भी क्या ?

तुम्हे भी मेरी हद पता है ज़ालिम
चुन चुन के वार करती हो

जो यूँ बेकरार हैं हम तुम भी हो
या आँखों आँखों में प्यार करती हो

मुस्कुराती हो कभी शर्माती हो
ये सितम क्यूँ मेरे यार करती हो

रात का ख़ुमार रहता है पुरे दिन
तुम क्यूँ ऐसा श्रृंगार करती हो

बस एक नज़र और दीवाना किया
"सैफ़" को क्यूँ इतना बेकरार करती हो

Tuesday, March 31, 2009

साधारण

नित नये समय में, कुछ ऐसा हो जाता है

पंछी उड़ते रहते हैं, घर उनका खो जाता है
इक पल को तैयार हूँ, इस सादे हाला में

मोती जैसा बिखरा था, एक साधारण माला में
मुझको आपना कहने वाले, कुछ धोखा तो खायेंगे

जब वो मुझ को खोजेंगे, तब हम खो जायेंगे
जाने क्यूँ करता है , "सैफ़" वफ़ा की बातें

तोडी हैं क़समें उसने, झूठी हैं उसकी बातें

Saturday, March 28, 2009

ऐसे सिलसिले

मुहब्बत भरे प्यार के सिलसिले

खुशियाँ बांटो दिल मिले न मिले

तन्हां है वो जो खुद को तन्हां कहे

हम तो पत्थरों के भी मिले हैं गले

रोते बिलखते बच्चों की सोचो

दो पैसे पर उनके दिल हैं खिले

नफरतें बाँट लो सब को लगा के गले

ऐ "सैफ़" ऐसा मौका मिले न मिले

Friday, March 20, 2009

प्रभु


मेरा न कुछ सब कुछ है तेरा

तेरे होवत होत सवेरा

मैं अग्ज्ञानी मांगूँ ज्ञान

प्रभु कहाँ है तेरा बसेरा

कस्तूरी मन डोलत है

काहे भगवन होत मेरा

"सैफ़" कहित सुनो सब भाई

प्रभु में मेरा है न तेरा

Monday, March 16, 2009

प्रार्थना

वो जो सर्वाधिक पास है मेरे
हे मेरे भगवान वो तू है
तू ही तो है वो
मैं जब भी किसी से नाराज़ हुआ
या मेरा मन उदास हुआ
नाम तेरा लेकर मैं
कर लेता हूँ अपने मन को शांत
हर बार दी शक्ति मुझे तुने
धन नही न सही पर
ज्ञान दिया मुझे तुने
माँ- बाप सी छत दी तुने
भाई बहनों से बाजू
गुरु सा दीपक दिया तुने
मित्र से मित्रता निभाने की शक्ति दी
ये तेरा उपकार है
हे ! मेरे परमपिता परमात्मा
तुम को मेरा प्रणाम है ।

Monday, March 9, 2009

एक दिन


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एक दिन
ऐसा हो जाएगा
मैं घर से निकलूंगा
रास्ता खो जाएगा
एक दिन
वो मुझे फ़िर मिल जायेंगे
उम्रभर की क़समें फ़िर खायेंगे
और वो मुझे फ़िर तन्हां छोड़ जायेंगे
एक दिन
पुरे होंगे हर सपने
बन जायेंगे गैर भी अपने
और अपनों का दामन छुटेगा
अपना दिल फ़िर टूटेगा
एक दिन

Thursday, March 5, 2009

खुबसूरत हकीकत


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क्या करूँ ?
तेरी खूबसूरती पर
कोई शेर बनता नही
इस जेहन में
पनपता तो है कुछ
मगर वो किसी हर्फ़ में
नही उतरता
टटोलता हूँ
इस ज़हन को अपने
और सोचता हूँ
मैं
ऐ खुदा !
अगर ये खूबसूरती सच है
तो, तू भी सच है
तू भी हकीकत है

इश्क


इश्क जब हुस्न पर आता है
तो अरमान मचल जाते हैं
वो कुछ कहते हो हैं हम से
हम समझ नही पाते है
तेरे हुस्न ही क्या तारीफ करूँ
मुझे कुछ कहना न गवारा होगा
काफिर तो बना दिया तुम ने मुझे
अब अपना बनाना होगा
अगर इस जहाँ में तुम न मिले
तो मुझे मौत को गले लगाना होगा
बात जो होती थी आंखों से
अब इस को बढ़ाना होगा
अब कंचन तुम्हे, अब कंचन तुम्हे
होटों से कुछ बताना होगा
इस बात से नाराज़ न होना
क्योकि ..........
इश्क जब हुस्न पर आता है
तो अरमान मचल जाते हैं

तू

आ तू मेरे पास,

लौट के जाने के लिए आ !

आ मुझे तू आज भी ,

आजमाने के लिए आ !

फांसला उम्र न काटने पाए,

आ मुझे छोड़ के जाने के लिए आ !

देख न खुश्क आँखे मेरी,

आ मुझे तू रुलाने के लिए आ !

मेरा नाम ले

न सोच कभी
मेरा नाम ले
न देख मुझे
पहचान ले
बस ऐसे है मुझे
तू जान ले
तेरा मैं
मुझे तू
अपना मान ले
रिश्ते मैं अपने
मुझे बाँध ले
मेरे मरने से पहले
मेरा नाम ले
एक रिश्ता बनाले
चल ...........
मेरा नाम ले ।

Wednesday, March 4, 2009

में तुम्हारी प्रतीक्षा मैं हूँ

मैं ,
क्षण भर को जीवित हूँ
इस प्रकृति की सृष्टि मैं
और अपनी ही दृष्टि मैं
क्षण भर को उत्साह मैं आता हूँ
फ़िर निराशा मैं खो जाता हूँ
किसी आहट के स्पर्श से
वापस खिल जाता हूँ
तुम्हे हो न हो मेरा इंतजार
पर मैं
तुम्हारी प्रतीक्षा मैं हूँ ।

"मयखाने"

जाहिद ! मैं क्यूँ न जाऊँ मयखाने
शायद इसी बहने हम खुदा को पहचाने
जहाँ लड़ता नही मजहब के लिए
छलकते हैं यहाँ सब के प्यमाने
हां यहीं तो मस्जिद है , यहीं है बुतखाना
यहीं पर मिलतें हां सब आशिक बेगाने
यहाँ पर साकी से बना अजब सा रिश्ता
बहुत दूर से वो अपनी आहात को जाने
भूख की चिंता नही दुःख को पहचाने
ऐ "सैफ" ऐसी जगह है मयखाने



"ज़िक्र-ऐ-जुस्तुजू"

जहाँ तक मन के आकाश पर छाने की बात है
सेहरा मैं जल बरसाने की बात है
सागर की प्यास बुझाने की बात है
रातों की बैचेनी बढ़ने की बात है
और बैचेनी मैं मुस्कुराने की बात है
आँखों की नींद उड़ने की बात है
दिल की धरकन बढ़ने की बात है
कोशिशों को कामयाबी बनने की बात है
वो तुम्हारा ही ज़िक्र है तुम्हारी ही बात है

ताज़ा समाचार

कुछ दिन में ये समाचार भी आ जाएगा
मेरा दोस्त था जो कभी वो मुझको ही खा जाएगा
उससे हसरत थी मुझे कभी भाई सी
लोटते वक़्त वो मेरा कफ़न भी जला जाएगा
मेरा हिस्सा था कभी जो इस दुनिया में
वो अपनी आंधी मैं सबको बहा जाएगा
अब न पहुचेगी पुरवाई दिल की उस तक
पुरी दुनिया मैं वो आग लगा जाएगा
कितने धोखे खाए हैं मेरे दिल ने उससे
''सैफ'' उसको भी सबक आज दिया जाएगा
आज कल के ताज़ा हालत पर

Tuesday, March 3, 2009

आशना

वो अलग है
उसकी मिसाल क्या
एक शब्द में कहदुं उसे खुदा
तो माफ़ करना मालिक
नहीं वो तुझ से जुदा
ये मैंने जनता हूँ तू मुझ से पूछ
मैं हर्फ़ हूँ तो वो है ज़बां
कुछ तो बात है जो मेरा है
वो अब तक आशना

Monday, March 2, 2009

ख्वाब

ऐ खुदा ऐसा हो मेरा मकान
जो हो मेरे माँ - बाप की शान
मेरे दिल अज़ीज़ भाइयों की जा
और वहां हो तुम्हारा अलग मुकाम
ये खुदा ऐसा हो मेरे मकान
बजे मन्दिर में घंटियाँ
सबके कानों तक पहुचे अजान
में कहूँ अल्लाहु , तुम्हारे ॐ में छुपे भगवान
एक ही घर में दिखलादें हम
नवरात्रे और रमजान
ऐ खुदा ऐसा हो मेरा मकान

खामोश परिवर्तन

पल मैं समय बदला
ज्ञान अज्ञान और विज्ञान बदला
विचारों की गंगा
आदर भी अभिमान मैं बदला
जो मेरे था मेरे ही रहा लेकिन
जिस पर हक था वो भगवान भी बदला
पहले कल्पना मैं खामोश रहा मैं
फ़िर तुम ने मेरी तान को बदला
आज तो तन्हाई से भी तनहा अकेला मैं
तुमने मेरा सम्मान भी बदला

''लम्स''

उसका कुछ कतरा और तेरे होंठों का लम्स
जब मुझे रह रह कर याद आता है
जिस तरह फूलों को छुआ हो मेरे होंठो ने
एक तीखी सी लहर मेरे जेहन में
गूंजती है रह रह के पल दो पल में
क्या हुआ मुझे जो कदम लड़खडाने लगे
जबान चुप मगर होंठ बडबडाने लगे
अब सोचता हूँ घर जाऊँ केसे
आंखों के उठते धुँए को छुपाऊं केसे
अब मेरे होंठों की रंगत बदने लगी
वो जो लग के मेरे लब से जेहन मैं चढ़ने लगी
मैं चाहकर भी उसे हटा न सका
और वो मुझ मैं समाती गयी समाती गयी

सोच

मैं जानता था
ये एक दिन होने वाला है
तो इसमे ये हेरत केसी
तुम्हे आना था मेरे करीब तुम आ गयी
तो अब तुममे ये गेरत केसी
तुम तो कहती थी
हम न बदलेंगे कभी
फ़िर तुम ने बदली फितरत केसी

मुझे पता है

मुझे पता है
मुझसे सब छुट जायेंगे
सारे बंधन टूट जायेंगे
ये दर्पण चट्केगा नही
पर टुकड़े !
दूर तलक , बिखर जायेंगे
मुझे पता है ।

कोई मेरे ही नही

कोई मेरा ही नही
राह तो हैं बहुत
मंजिलें हैं कई
कोई मेरा ही नही
रात सा दिन है ढला
थोडी बैचेनी बढा
आँख फ़िर सोई नही
कोई मेरा ही नहीं
फ़िर काफिला सा मिला
आशना सा नहीं
हम सफर थे कई
कोई मेरा ही नहीं

Friday, February 27, 2009

पीछे मुडकर देखा तो क्या देखा

पीछे मुडकर देखा तो क्या देखा
अपना ही दिल जला देखा
अभी सुबह नही हुई थी लेकिन
लाशों का काफिला देखा
मिटने हो उनके नाम पर
शहीदों का होंसला देखा
हमने डूब के इश्क के दरिया मैं
अपना रोम-रोम जला देखा

शाम होते ही

शाम होते ही उनके रुख से पर्दा गिर जाएगा

अंधेरे मैं फिर कौन राह दिख लायेगा

गर्म मौसम मैं वो साथ तो देदेगा लेकिन

खिज़ा मैं हर अपना उससे दूर हो जाएगा

दर्द बढेगा तो कम भी होगा कभी

ये बात अलग है की मंज़र बदल जाएगा

''सैफ'' से सुन कर ये बेतुकिं बातें

ये बन्दा भी अपने घर निकल जाएगा

तुम असमंजस मैं हो

तुम असमंजस मैं हो

अभी जाँच लो परख लो मुझे

जिस दिन

शंकाएँ दूर हो जायेगी तुम्हारी

उस दिन

तुम मेरी

सिर्फ़ मेरी हो जाओगी

तुम असमंजस मैं हो

करता हूँ जिसकी बंदगी
क्या दूँ उसे ऐ जिंदगी
जिसको पा के आंखे नम रहें उसकी
कब से तलाश रहा हूँ वो खुशी
उशी अदाओं को एजाज है
हरेक शख्स चाहे है खुदकुशी
उसकी इनयात-ऐ- नज़रों की
गुलाम है सैफ जिंदगी आपकी

...........तमन्ना.........

कौन चाहता हैं हारें वो

चाँद से हैं प्यारे वो

चांदनी जले देख जिसे

चमकते हुए तारे वो

कौन सरहद पर जीये

जिन्दा हो तो मारे वो

साँस रुके रुक जाए

एक दफा पुकारें वो

''सैफ'' तुम लाचार हो और

इश्क मैं बेचारे वो

Wednesday, February 25, 2009

मैं समय हूँ

विचार नीति संस्कृति
या प्रकिती की कोई कृति
मैं सब का संचालक हूँ
मैं समय हूँ
ज्ञान विज्ञानं ओध्योगिकी
सागर आकाश और जीवन की
रचना का मैं करक हूँ
मैं समय हूँ
मृत्यु काल अंत
और ब्रहमांड में फेले अंधकार का
मैं विनाशक हूँ
मैं समय हूँ
कल्पना कार्य आविष्कार
दीपक की ज्योति से ज्यादा प्रकाशवान
मोक्ष दिलाने मैं साधक हूँ
मैं समय हूँ
मैं इश्वर हूँ
14 जुलाई 2004

मैं तेरा दीवाना हो गया

मुझे मान दे
सम्मान दे
मुझे एक नई पहचान दे
मुझे दे परतिष्ठा अपमान दे
मैं तेरा दीवाना हो गया
मुझे प्यार दे या मार दे
मेरे साईं तू वरदान दे
मुझे ज्ञान का तू दान दे
रहूँ दास तेरा उम्रभर
तू ऐसी मुझको शान दे
तू बुला के अपनी शरण मैं
मुझ अज्ञानी को तू ज्ञान दे
मैं तेरा दीवाना हो गया
मुझे प्यार दे या मार दे
मुझे दर्द सब का चहिये
मुझे इतना तू इनाम दे
सुनूँ सब की मैं इत्मिनान से
मेरी सब्र मैं इतनी जान दे
मैं तेरा दीवाना हो गया
मुझे प्यार दे या मार दे

ये शायद कल की बात लगती है दिनांक २६/०६/2005

Friday, February 20, 2009

...........गीत.............

एक गीत जो कभी गाया नहीं गया

एक तो इश्क-ऐ-तपिश ऐसी बड़ती रही
मैं तड़पता रहा तू पिघलती रही
साथ हम तुम चले फिर वो क्यूँ रुक गये
और वो ऐसे रुके की चले ही नहीं
मुझे तो कहा हम मिलेंगे वहीँ
वो आए नहीं रात बढती रही .
एक तो इश्क-ऐ-तपिश ऐसी बड़ती रही
मैं तड़पता रहा तू पिघलती रही
मेरे अन्दर उन्हीं बेरुखी सी पली
बात ऐसी बढ़ी की वो रुक न सकी
मैंने सोचा की हमदम मेरे साथ है
हाँ मैं रुक सा गया और वो चलती रही
एक तो इश्क-ऐ-तपिश ऐसी बड़ती रही
मैं तड़पता रहा तू पिघलती रही
ऐ खुदा "सैफ" से हो गयी क्या खता
उसको मालूम नहीं है उसे तू बता
साथ उसके नही कोई आशना
जान जो थी बची वो निकलती रही
एक तो इश्क-ऐ-तपिश ऐसी बड़ती रही
मैं तड़पता रहा तू पिघलती रही

Wednesday, February 4, 2009

.........प्राथना...........

साज़ है आवाज़ है तू
तू अँधेरा तू किरण
तू prbhat की वो दिशा है
जिस पे चलता है गगन
सअब का तू है सब है तेरे
सब से achcha तेरा चलन
न ही बनता न बिगड़ता
सब की धुन मैं तू मगन
सुबह सवेरे सबसे पहले
करता "सैफ़" तुझे नमन

...........ख्याल.............

तेरा ख्याल
वाह कमाल
सिमटे निगाह
महकता जमाल
याद दिलाता
तेरा रुमाल
बदला जो ''सैफ''
खुदा सम्हाल

..........सपना............

कुछ हादसे बंद हैं हांथों की लकीरों मैं
पर यकीन करो खुश रहोगी तुम
न फूलों की सेज दूंगा न काँटों का रास्ता
साथ तो चलो खुश रहो गी तुम
एसा क्यों कहूँ जो कहोगी करूँगा मैं
हैं ये बात जान लो खुश रहोगी तुम
''सैफ'' कहता है दुआ करो अल्लाह से
वो खुश रहेगा तो खुश रहोगी तुम

Friday, January 23, 2009

...............नज़्म....................

आप की दोस्ती दोस्तों
है मेरी ज़िन्दगी दोस्तों
जिनको दुनिया ने आंसू दिए
उनको बांटों खुशी दोस्तों
तुम गले से लगाओ उन्हें
जो करे दुश्मनी दोस्तों
एक अबला को बनके अज़ल
खा गयी मुफलिसी दोस्तों
खिदमते मादरे हिंद से
किसलिए बेरुखी दोस्तों
हैं यकीं कुछ करेगी असर
"सैफ" की शायरी दोस्तों
उस्ताद श्री वीरेंदर कुमार "कंवर" जी के आशीर्वाद से

.............मेरा देश और मैं.............

जो दिल से दिल को जोड़े, वो प्यारा है दोस्तों
हर हल मैं ये मुल्क, हमारा है दोस्तों
हिंदू हों या के सिख हों, मुस्लिम हो या सलीबी
ये मुल्क सब की, आँख का तारा है दोस्तों
उठने न देंगे आंख बुरी जानिबे वतन
ये देश हमें जान से प्यारा है दोस्तों
हम केसे उन्हें भूलें लहू दे के जिन्होंने
इस मुल्क की अजमत को संवारा है दोस्तों
हम को कसम है अपने शहीदों के खून की
हर ज़रा ज़रा इस का हमारा है दोस्तों
वो हम को फकीरों से मिली सब्र की तालीम
थोड़े मैं बहुत अपना गुज़ारा है दोस्तों
उस्ताद श्री वीरेंदर कुमार "कंवर" जी के आशीर्वाद से

Thursday, January 22, 2009

...............नज़्म................

रौशनी मैं ढालो, राह मिल जायेगी

तिरगी बाँट लो, राह मिल जायेगी

मंजिलों तक कहीं, रुक के लेना न दम

बस चलो बस चलो, राह मिल जायेगी

ग़रजो तन्हां चले, तो भटकने का डर

काफिलों से मिलो, राह मिल जायेगी

गुल तो महदूद होते हैं शाखों तलक

खुशबुओं मैं ढालो, राह मिल जायेगी

किस लिए हैं भला इतनी बेताबियाँ

सब्र से काम लो, राह मिल जायेगी

उस्ताद श्री वीरेंदर ''कवंर'' जी के आशीर्वाद से

..........क्यूँ हुए बरबाद..................

बराबाद हो गये हैं , तेरी चाहत मैं जाने जाना
जाने क्या लिखा है , किस्मत मैं जाने जाना
तुम्ही ही हो मेरी दुनिया का अनमोल खजाना
मेरी दुनिया से कभी तुम कभी दूर न हो जाना
कहता है दिल ये मेरा तुम पास हो यहीं पर
एसी नज़र नहीं की देखूं तेरा ठिकाना
बरबादहो गये हैं , तेरी चाहत मैं जाने जाना
जाने क्या लिखा है , किस्मत मैं जाने जाना
एक लम्स चाहिए इस पल मैं जाने जाना
जो कर दे मुझे फिर से दीवाना
ये आरजू है दिल की दूर फिर न जाना
लिख दिया ''सैफ'' ने फिर वही फसाना
बरबादहो गये हैं , तेरी चाहत मैं जाने जाना
जाने क्या लिखा है , किस्मत मैं जाने जाना

Wednesday, January 21, 2009

जब भी तनहा हुआ करो, दिल की धड़कन सुना करो

मेरा जीवन तुम से है, दूर न मुझसे हुआ करो

दुश्मने जां है खामोशी, कहते सुनते रहा करो

कल की saari चिंताएँ, ज़हनो- दिल से जुदा करो

खो जाने का खतरा है, साथ हमेशा रहा करो

ऐ भी क्या वादा वादा, कोई तो वादा वफ़ा करो

अपने संग संग अपनों की , खैर ख़बर भी रखा करो

सैफ जो दिल को तडपादे, वो बातें मत किया करो

उस्ताद :- श्री वीरेंदर कुमार 'कवंर' जी की कृपा से

Monday, January 19, 2009

.........मंथन.........

बहुत दिनों तक सोचा मैंने
अपनी अभिलाषाओं को अपने ही अन्दर
भूखे जानवर सा नोचा मैंने
न जाने क्यों थक गया था मैं
इस जीवन की कशमकश से
निराशा सी हो गयी थी मुझे अपने अंतर्मन से
बहक गया था मैं जिंदगी के सफर से
आज लोटना चाहता हूँ
वापस उस मंजिल की तरफ़
जिसके रास्ते मैं आग का दरिया है
अकेले ही चलना चाहता हूँ
अपने अग्निपथ पर
कर लूँगा पार एक दिन
हर आग के दरिया को
अपने लोटे आत्मबल से

Saturday, January 17, 2009

ख्वाब

मैं सही मायने में एक इन्सान बनना चाहता हूँ
शान्ति के लिए ही सही
म्यान में सोई हुई तलवार बनना चाहता हूँ
तेरे आँखों से निकलते आंसुओं की धार बनना चाहता हूँ
मैं सही मायने में एक इन्सान बनना चाहता हूँ
तेरे मन में उमड्ते प्यार की पतवार बनना चाहता हूँ
तेरे अधरों से निकलती आह पर
मुस्कान बनना चाहता हूँ
मैं सही मायने में एक इन्सान बनना चाहता हूँ
ब्रह्मा की रची इस सिरिष्टि में
शेष पर बेठे हरी का अवतार बनना चाहता हूँ
राधा के लिए कृष्ण का प्यार बनना चाहता हूँ
मैं सही मायने में एक इन्सान बनना चाहता हूँ
मैं सही मायने में एक इन्सान बनना चाहता हूँ

Friday, January 16, 2009

इश्क

ये उन दिनों की बात है जब मैंने सोचना शुरु किया था
दिनांक १९ नवम्बर १९९९
महफिल तमाम घूमें हम
आशिकों की तरह बदनाम न थे,
तुमने हम से दिल जो लगाया
बदनामी का किस्सा आबाद हो गया,
हर शहर मैं हो गयी पहचान मेरी
पहचान छुपाना भी दुश्वार हो गया,
मोहब्बत थी तुम्हारी या नशा था
मैं हर तरफ़ से लाचार हो गया,
सोया करते थे हम भी कभी
अब नींद को भी हमारी इश्क-के -बुखार हो गया,
खेल क्या खेला नज़रों से तुमने
मैं तुम्हारे रकीबों का शिकार हो गया ,
नाम मेरा न था दीवानों मैं
आज दीवानों मैं, मैं भी शुमार हो गया,
सरफ़राज़ से ''सैफ'' हो गया देखो
जब से तुम्हारा दीदार हो गया

Monday, January 5, 2009

मुलाकात

कल रात ख्वाब में

मिल गये वो इस हलात में ,

हो गये वो दिल के मेहमा बस

एक रात में

जो भी थी दिल की आरजू

बस पुरी हुई ख्वाब में

ये तमन्ना रही दिल की दिल में

की मुलाकात होती महफिल में

अरमा दबे हैं इस दिल में

के तुम मिलो हकीकत में

काश तुम इस दिल के मेहमा होते

मेरे घर मैं तुम मेरे संग रहते

मगर क्या जाने उसके दिल मैं है

मिलना नही तुम से महफिल में है

चलो इस बहने

ख्वाब में ही तुम से मुलाकात करलें

और कुछ बात करलें !

Friday, January 2, 2009

मुझे एक सेहर की तलाश है


कहाँ है तू ,
तेरी दिशा मैं तुझे दिन - रात
देखता हूँ मैं ,
मुझे एक सेहर की तलाश है,
सर्दिओं की धुंध मैं ,
मुझे एक लहर की तलाश है
मैं अकेला कभी रहा नही
मुझे हमसफ़र की तलाश है
कभी रात दिल मैं utar gyee
कभी दिन मुझको nigal gyaa
मैं भटक रहा हूँ यूँ किस trha
मुझे किस सफर ही तलाश है
क्यों 'सैफ' बदनाम हो गये
तुम gliyon मैं खो गये
कभी to तुमपे padegi wo
tumhe jis नज़र की तलाश है