Sunday, April 26, 2009

नाम लेते हैं

वो मेरा जब भी नाम लेते हैं

वो मेरा इम्तिहान लेते हैं

मैं ठहरी झील नहीं हूँ हमदम

क्यूँ वो चांदनी बिखेर देते हैं

सुबह को, शाम को, और रात में भी

क्यूँ हाथ में वो जाम लेते हैं

वो मेरा मुकद्दर नहीं तो क्या

"सैफ़" गिरते को थाम लेते हैं

1 comment:

उम्मीद said...

बहुत खूब.......अच्छी रचना.....