Saturday, April 25, 2009

हाले-दिल

मेरे हालात मुझे चैन से रहने नहीं देते
मैं कहूँ हाले-दिल तो वो कहने नहीं देते
सिसकिओं में रात निकली कल की
शहर के मातम मुझे सोने नहीं देते
है विरानिओं में धुंधला सा साया मेरा
नोचते हैं गोस्त वो मुझे मरने नहीं देते
बिखर ही जाता हूँ माला से मोतिओं की तरह
क्यूँ मेरे दोस्त मुझे मेरा रहने नहीं देते
क्या जाने "सैफ़" क्या मर्जी है उनकी
जिंदगी क्यूँ वो मेरी बदलने नहीं देते

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