मुझे तुम प्यार करते हो
तो ये हक़ भी रखते हो
मेरे ख्वाबों में तुम आओ
मेरी तन्हाईयाँ मिटा जाओ
बहारें तुम से रोशन हैं
नज़ारे तुम से रोशन हैं
तुम ही से है कायनात मेरी
तुम्ही से हर बात मेरी
तुम ही तुम हो ज़माने में
तुम्ही हो दिल लगाने में
कोई न तुम से है दूजा
तुम्हारी करता मैं पूजा
चले आओ ज़रा छुपकर
ज़माने से ज़रा बचकर
मैं अब भी तुम्हारा हूँ
सितम से अब मैं हारा हूँ
कमी क्या है मुझ में ऐसी
क्यूँ तेरे चेहरे पर है उदासी
बात है बस इतनी छोटी
मुझे तुम प्यार करते हो !
4 comments:
प्रिय मित्र
आपकी रचना ने प्रभावित किया बधाई इन्हें प्रकाशित करने के लिए मेरे ब्लाग पर पधारें।
अखिलेश शुक्ल्
http://katha-chakra.blogspot.com
sunder rachna.
वाह मेरे लाल!! तुम तो छा गये. कितना गहरा उतरा मेरा दोस्त .....वो खाई इतनी गहरी तो नही थी...जिसमें वो तुम्हें धक्का दे गई थी. :-)
sahi hai, vakai acchi composition hai..
well "MUJHE TUM PYAR KARTEY HO KI JAGEH"
"TUMHE MAIN PYAR KARTA HU.."
likhtey to jyada achha lagta..
by-d-way...gud one..
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