Saturday, May 16, 2009

मुझे तुम प्यार करते हो

मुझे तुम प्यार करते हो

तो ये हक़ भी रखते हो

मेरे ख्वाबों में तुम आओ

मेरी तन्हाईयाँ मिटा जाओ

बहारें तुम से रोशन हैं

नज़ारे तुम से रोशन हैं

तुम ही से है कायनात मेरी

तुम्ही से हर बात मेरी

तुम ही तुम हो ज़माने में

तुम्ही हो दिल लगाने में

कोई न तुम से है दूजा

तुम्हारी करता मैं पूजा

चले आओ ज़रा छुपकर

ज़माने से ज़रा बचकर

मैं अब भी तुम्हारा हूँ

सितम से अब मैं हारा हूँ

कमी क्या है मुझ में ऐसी

क्यूँ तेरे चेहरे पर है उदासी

बात है बस इतनी छोटी

मुझे तुम प्यार करते हो !

4 comments:

अखिलेश शुक्ल said...

प्रिय मित्र
आपकी रचना ने प्रभावित किया बधाई इन्हें प्रकाशित करने के लिए मेरे ब्लाग पर पधारें।
अखिलेश शुक्ल्
http://katha-chakra.blogspot.com

Yogesh Verma Swapn said...

sunder rachna.

मनुदीप यदुवंशी said...

वाह मेरे लाल!! तुम तो छा गये. कितना गहरा उतरा मेरा दोस्त .....वो खाई इतनी गहरी तो नही थी...जिसमें वो तुम्हें धक्का दे गई थी. :-)

Anita B... said...

sahi hai, vakai acchi composition hai..
well "MUJHE TUM PYAR KARTEY HO KI JAGEH"

"TUMHE MAIN PYAR KARTA HU.."
likhtey to jyada achha lagta..

by-d-way...gud one..