वो मेरा जब भी नाम लेते हैं
वो मेरा इम्तिहान लेते हैं
मैं ठहरी झील नहीं हूँ हमदम
क्यूँ वो चांदनी बिखेर देते हैं
सुबह को, शाम को, और रात में भी
क्यूँ हाथ में वो जाम लेते हैं
वो मेरा मुकद्दर नहीं तो क्या
"सैफ़" गिरते को थाम लेते हैं
वो मेरा जब भी नाम लेते हैं
वो मेरा इम्तिहान लेते हैं
मैं ठहरी झील नहीं हूँ हमदम
क्यूँ वो चांदनी बिखेर देते हैं
सुबह को, शाम को, और रात में भी
क्यूँ हाथ में वो जाम लेते हैं
वो मेरा मुकद्दर नहीं तो क्या
"सैफ़" गिरते को थाम लेते हैं
1 comment:
बहुत खूब.......अच्छी रचना.....
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