पीछे मुडकर देखा तो क्या देखा
अपना ही दिल जला देखा
अभी सुबह नही हुई थी लेकिन
लाशों का काफिला देखा
मिटने हो उनके नाम पर
शहीदों का होंसला देखा
हमने डूब के इश्क के दरिया मैं
अपना रोम-रोम जला देखा
शाम होते ही उनके रुख से पर्दा गिर जाएगा
अंधेरे मैं फिर कौन राह दिख लायेगा
गर्म मौसम मैं वो साथ तो देदेगा लेकिन
खिज़ा मैं हर अपना उससे दूर हो जाएगा
दर्द बढेगा तो कम भी होगा कभी
ये बात अलग है की मंज़र बदल जाएगा
''सैफ'' से सुन कर ये बेतुकिं बातें
ये बन्दा भी अपने घर निकल जाएगा
तुम असमंजस मैं हो
अभी जाँच लो परख लो मुझे
जिस दिन
शंकाएँ दूर हो जायेगी तुम्हारी
उस दिन
तुम मेरी
सिर्फ़ मेरी हो जाओगी
तुम असमंजस मैं हो
कौन चाहता हैं हारें वो
चाँद से हैं प्यारे वो
चांदनी जले देख जिसे
चमकते हुए तारे वो
कौन सरहद पर जीये
जिन्दा हो तो मारे वो
साँस रुके रुक जाए
एक दफा पुकारें वो
''सैफ'' तुम लाचार हो और
इश्क मैं बेचारे वो
ये शायद कल की बात लगती है दिनांक २६/०६/2005