Friday, February 27, 2009

शाम होते ही

शाम होते ही उनके रुख से पर्दा गिर जाएगा

अंधेरे मैं फिर कौन राह दिख लायेगा

गर्म मौसम मैं वो साथ तो देदेगा लेकिन

खिज़ा मैं हर अपना उससे दूर हो जाएगा

दर्द बढेगा तो कम भी होगा कभी

ये बात अलग है की मंज़र बदल जाएगा

''सैफ'' से सुन कर ये बेतुकिं बातें

ये बन्दा भी अपने घर निकल जाएगा

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