शाम होते ही उनके रुख से पर्दा गिर जाएगा
अंधेरे मैं फिर कौन राह दिख लायेगा
गर्म मौसम मैं वो साथ तो देदेगा लेकिन
खिज़ा मैं हर अपना उससे दूर हो जाएगा
दर्द बढेगा तो कम भी होगा कभी
ये बात अलग है की मंज़र बदल जाएगा
''सैफ'' से सुन कर ये बेतुकिं बातें
ये बन्दा भी अपने घर निकल जाएगा
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