Wednesday, February 4, 2009

.........प्राथना...........

साज़ है आवाज़ है तू
तू अँधेरा तू किरण
तू prbhat की वो दिशा है
जिस पे चलता है गगन
सअब का तू है सब है तेरे
सब से achcha तेरा चलन
न ही बनता न बिगड़ता
सब की धुन मैं तू मगन
सुबह सवेरे सबसे पहले
करता "सैफ़" तुझे नमन

1 comment:

मनुदीप यदुवंशी said...

वो दिन याद आगये जब हम कालेज मॅ थे. सच यार ब्लोग पर तेरे रचना को देख कर बड़ी खुशी हुई.
उत्तम रचना के लिये धन्यवाद. ळिखते रहो शमशीर-ए-कलम से. ये अन्धेरा घना यॉ ही कट जायेगा....