Saturday, March 28, 2009

ऐसे सिलसिले

मुहब्बत भरे प्यार के सिलसिले

खुशियाँ बांटो दिल मिले न मिले

तन्हां है वो जो खुद को तन्हां कहे

हम तो पत्थरों के भी मिले हैं गले

रोते बिलखते बच्चों की सोचो

दो पैसे पर उनके दिल हैं खिले

नफरतें बाँट लो सब को लगा के गले

ऐ "सैफ़" ऐसा मौका मिले न मिले

1 comment:

Yogesh Verma Swapn said...

bahut sunder bhai, bahut khoob, bahut achcha likha , dheron badhai.