जाहिद ! मैं क्यूँ न जाऊँ मयखाने
शायद इसी बहने हम खुदा को पहचाने
जहाँ लड़ता नही मजहब के लिए
छलकते हैं यहाँ सब के प्यमाने
हां यहीं तो मस्जिद है , यहीं है बुतखाना
यहीं पर मिलतें हां सब आशिक बेगाने
यहाँ पर साकी से बना अजब सा रिश्ता
बहुत दूर से वो अपनी आहात को जाने
भूख की चिंता नही दुःख को पहचाने
ऐ "सैफ" ऐसी जगह है मयखाने
1 comment:
BAHUT SUNDER LIKHA HAI AUR ACHCHA HO SAKTA THA, HARIVANSH RAI BACHCHAN KI MADHUSHALA PADHEN. DHANYAWAAD.
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