Monday, March 2, 2009

कोई मेरे ही नही

कोई मेरा ही नही
राह तो हैं बहुत
मंजिलें हैं कई
कोई मेरा ही नही
रात सा दिन है ढला
थोडी बैचेनी बढा
आँख फ़िर सोई नही
कोई मेरा ही नहीं
फ़िर काफिला सा मिला
आशना सा नहीं
हम सफर थे कई
कोई मेरा ही नहीं

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