ek sehar ki talash hai
Monday, March 2, 2009
कोई मेरे ही नही
कोई मेरा ही नही
राह तो हैं बहुत
मंजिलें हैं कई
कोई मेरा ही नही
रात सा दिन है ढला
थोडी बैचेनी बढा
आँख फ़िर सोई नही
कोई मेरा ही नहीं
फ़िर काफिला सा मिला
आशना सा नहीं
हम सफर थे कई
कोई मेरा ही नहीं
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Mohd. Sarfaraz
लेखन उत्तम धन कर दे मन को प्रसन्न. आपके विचारों को कोई पढता है तो वो आगे के लिए आप का मार्ग प्रदर्शक बनता था , अपने विचारों को रखने का ब्लॉग से अच्छा कोई साधन नहीं है . धन्यवाद मित्र मनु और blogspot जिसने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया .
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